राम और सुग्रीव : रामकथा/रामायन | भाग-9



राम और लक्ष्मण का अगला पड़ाव ऋष्यमूक पर्वत था। सुग्रीव वहीं रहते थे। कबंध् और शबरी की बात दोनों भाइयों को याद थी। दोनों ने सुग्रीव से मिलने की सलाह दी थी। कहा था कि वे सीता की खोज में सहायक होंगे। दोनों राजकुमार शीघ्रता से वहाँ पहुँचना चाहते थे। सुग्रीव का मूल निवास ऋष्यमूक पर्वत नहीं था। कि¯ष्वफध था। ऋष्यमूक में वह निर्वासन में अपना समय बिता रहे थे। सुग्रीव कि¯ष्वफध के वानरराज के छोटे पुत्र थे। बड़े भाई का नाम बाली था। पिता के न रहने पर ज्येष्ठ पुत्र बाली राजा बना। पहले दोनों भाइयों में बहुत प्रेम था। राजकाज में किसी बात को लेकर मनमुटाव हुआ। फिर झगड़ा हो गया। इतना गंभीर कि बाली सुग्रीव को मार डालने पर उतर आया। जान बचाने के लिए सुग्रीव को ऋष्यमूक आना पड़ा। ऋष्यमूक आकर भी सुग्रीव का डर कम नहीं हुआ था। वह चैकस रहता था। विश्वासपात्र वानर सेना निरंतर पहरे पर रहती थी। सुग्रीव स्वयं भी पहरा देता था। इस डर से कि कहीं बाली के गुप्तचर सैनिक वहाँ न पहुँच जाएँ। एक दिन सुग्रीव पहाड़ी पर खड़ा था। उसने दो युवकों को उधर आते देखा। ये दोनों अवश्य बाली के गुप्तचर होंगे। मुझे मारने आ रहे होंगे।सुग्रीव ने तत्काल अपने साथियों को बुलाया। हमें ऋष्यमूक छोड़ देना चाहिए। यह स्थान अब सुरक्षित नहीं है। बाली यहाँ भी आ ध्मका है,” सुग्रीव ने अपने साथियों से कहा। मैंने दो युवकों को इधर आते देखा है। उनके हाथों में धनुष हैं।सुग्रीव घबराया हुआ था। पर उसके प्रमुख साथी हनुमान इससे सहमत नहीं थे। मैं जाकर पता लगाता हूँ कि वे कौन हैं। बाली की सेना में ऐसे सैनिक नहीं हैं,” हनुमान ने भी दोनों युवकों को देख लिया था। हनुमान पर सुग्रीव को भरोसा था। उसने बात मान ली। राम और लक्ष्मण पहाड़ी पर चढ़ते-चढ़ते थक गए थे। वे पहाड़ी सरोवर के पास रुके। थकान मिटाने। मुँह-हाथ धेने। तभी भेस बदलकर हनुमान वहाँ पहुँच गए। शिष्टता से प्रणाम किया। पूछा, “आप दोनों कौन हैं? वन में क्यों भटक रहे हैं? आपका भेस मुनियों जैसा है लेकिन चेहरे से राजकुमार लगते हैं।” “हम सुग्रीव से मिलने जा रहे हैं। हमें उनकी सहायता की आवश्यकता है। क्या आप उन्हें जानते हैं?” राम ने विनम्रता से पूछा। प्रारंभिक बातचीत में ही हनुमान स्थिति भाँप गए। वे अपने मूल रूप में आ गए। प्रणाम करते हुए बोले, “मैं हनुमान हूँ। सुग्रीव का सेवक। उन्होंने आपका परिचय जानने के लिए यहाँ भेजा था।लक्ष्मण ने उन्हें अपना परिचय दिया। वन में आने का कारण बताया। यह भी बताया कि वे कबंध् और शबरी की सलाह पर आए हैं। सुग्रीव से मिलने। उनसे सहायता माँगने। हनुमान के चेहरे पर हलकी-सी मुसवफराहट आ गई। कोई उससे सहायता माँगने आया है, जिसे स्वयं सहायता चाहिए। हनुमान समझ गए। राम और सुग्रीव की स्थिति एक जैसी है। दोनों को एक-दूसरे की सहायता चाहिए। वे मित्र हो सकते हैं। एक अयोध्या से निर्वासित है, दूसरा कि¯ष्वफधा से। एक की पत्नी को रावण उठा ले गया है। दूसरे की पत्नी उसके भाई ने छीन ली है। दोनों के पिता नहीं हैं। हनुमान ने राम और लक्ष्मण को वंफधे पर बैठाया। कुछ ही पल में वे ऋष्यमूक के शिखर पर पहुँच गए। हनुमान ने दोनों को सुग्रीव से मिलाया। दोनों ने अग्नि को साक्षी मानकर मित्रता का वचन लिया। सुग्रीव ने कहा, “आज से हमारे सुख-दुःख साझा हैं।राम ने सुग्रीव को सीता-हरण के संबंध् में बताया तो सुग्रीव अचानक उठ खड़े हुए। उन्हें कुछ याद आया। बोले, फ्वानरों ने मुझे एक स्त्री के हरण की बात बताई थी। वह निश्चित रूप से सीता ही रही होंगी। रावण का रथ इसी पर्वत के ऊपर से गया था।राम और लक्ष्मण ध्यान से उनकी बात सुन रहे थे। सुग्रीव बोलते रहे, “सीता स्वयं को रावण के चंगुल से छुड़ाने का यत्न कर रही थीं। वानरों को देखकर उन्होंने अपने कुछ आभूषण नीचे फेंक दिए थे।गहनों की एक पोटली राम के सामने रखते हुए उन्होंने कहा, फ्देखिए, क्या ये गहने सीता के हैं?” राम ने आभूषण तुरंत पहचान लिए। कुछ गहने लक्ष्मण ने भी पहचाने। गहने देखकर राम शोक सागर में डूब गए। उनके मुँह से निकला, धिक्कार है मुझे, हे सीते! मैं संकट में तुम्हारी रक्षा नहीं कर सका। मेरा पौरुष, बल, पराक्रम, ज्ञान तुम्हारे काम नहीं आया।सुग्रीव ने उन्हें सांत्वना दी। सीता अवश्य मिल जाएँगी। मैं हर प्रकार से आपकी सहायता करूँ गा, मित्र। रावण का सर्वनाश निश्चित है।राम के बाद सुग्रीव ने अपनी व्यथा-कथा सुनाई। फ्बाली ने मुझे राज्य से निकाल दिया है। मेरी स्त्री छीन ली। मेरा वध् करने की चेष्टा कर रहा है। संकट के समय हनुमान, नल और नील ने मेरा साथ दिया। मुझे कभी नहीं छोड़ा।उसने राम से सहायता माँगी। राम बोले, चिंता मत करो मित्र। तुम्हें अपना राज्य भी मिलेगा और स्त्री भी।राम देखने में सुकुमार थे। उन्हें देखकर उनकी शक्ति का पता नहीं चलता था। सुग्रीव को राम के आश्वासन पर भरोसा नहीं हुआ। फ्बाली महाबलशाली है। उसे हराना इतना आसान नहीं है। वह शाल के सात वृक्षों को एक साथ झकझोर सकता है।राम ने कोई उत्तर नहीं दिया। धनुष उठाया और तीर चला दिया। शाल के सातों विशाल वृक्ष एक ही बाण से कटकर गिर पड़े। इस शक्ति प्रदर्शन पर सुग्रीव ने हाथ जोड़ लिए। राम ने कहा, फ्मित्र! अब विलंब कैसा? बाली को युद्ध के लिए ललकारो। कि¯ष्वफध की राजगद्दी का निर्णय उसी युद्ध में हो जाएगा।सुग्रीव चिंतित हो गए। युद्ध में बाली को हराना असंभव था। राम बोले, चिंता मत करो मित्र। मैं पेड़ की ओट से युद्ध देखँूगा। जब तुम पर संकट आएगा, तुम्हारी सहायता करूँ गा। बाली की मृत्यु मेरे ही बाण से होगी। वह मारा जाएगा।योजना बनाकर सब कि¯ष्वफध पहुँच गए। सुग्रीव आगे था। राम, लक्ष्मण और हनुमान छिप गए थे। मेरे पीछे राम की शक्ति है,’ सोचते हुए उसने बाली को ललकारा। बाली के क्रोध् की सीमा न रही। वह गरजता हुआ निकला। आज शिकार स्वयं मेरे मुँह तक आया है। मैं तुझे नहीं छोडूँगा।भीषण मल्ल युद्ध हुआ। दोनों एक-दूसरे से गुँथ गए। युद्ध में बाली भारी पड़ रहा था। लगता था सुग्रीव का अंत निश्चित है। राम पेड़ के पीछे खड़े थे। धनुष हाथ में था। पर उन्होंने तीर नहीं चलाया। सुग्रीव वहाँ से किसी तरह जान बचाकर भागा। सीध ऋष्यमूक पर्वत आकर रुका। राम, लक्ष्मण और हनुमान भी लौट आए। सुग्रीव राम पर कुपित था। यह धोखा है। आपने मेरे साथ धेखा किया। समय पर बाण नहीं चलाया। मैं नहीं भागता तो आज वह मुझे मार डालता।राम की कठिनाई दूसरी थी। वे दुविध में थे। उन्होंने सुग्रीव को समझाया, “तुम दोनों भाइयों के चेहरे मिलते-जुलते हैं। दूर से दोनों एक जैसे लगते हो। मैं बाली को पहचान नहीं पाया। बिना पहचाने बाण चलाता तो वह तुम्हें भी लग सकता था। मैं इस चूक के लिए तैयार नहीं था। मैं अपने मित्र को खोना नहीं चाहता था।लक्ष्मण ने समझा-बुझाकर सुग्रीव को तैयार किया। एक और युद्ध के लिए। राम ने कहा, “जाओ मित्र! इस बार बाली को पहचानने में चूक नहीं होगी। इस बार उसका अंत निश्चित है।सुग्रीव डरा हुआ था। घबराहट थी। पर राम के कहने पर तैयार हो गया। कि¯ष्वफध पहुँचकर उसने बाली को चुनौती दी। ललकारा। बाली को सुग्रीव का यह साहस समझ में नहीं आया। वह अंतःपुर में था। अपनी पत्नी रानी तारा के साथ। बाली जाने लगा तो तारा ने उसे समझाने का प्रयास किया। जाने से मना किया। बाली ने उसकी बात नहीं मानी। पैर पटकता बाहर आया। क्रोध् से उबल रहा था। बाली ने हाथ हवा में उठाया। वह एक घूँसे से सुग्रीव का काम तमाम कर देता। तभी राम का बाण उसकी छाती में लगा। वह लड़खड़ाकर गिर पड़ा। बाली के गिरने पर राम, लक्ष्मण और हनुमान पेड़ों की ओट से बाहर निकल आए। आनन-पफानन में राज्याभिषेक की तैयारियाँ की गईं। सुग्रीव को राजगद्दी मिली। राम की सलाह पर बाली के पुत्र अंगद को युवराज का पद दिया गया। राम ने सुग्रीव के लिए संबोध्न बदल दिया। राजगद्दी पर बैठने के बाद उन्हें मित्रनहीं कहा। वानरराजकहकर संबोध्ति किया। सुग्रीव का मन था कि राम कुछ समय वहीं रहें। उनके साथ। राम ने मना कर दिया। कहा, “यह पिता की आज्ञा के विरुद्ध होगा। उन्होंने मुझे वनवास दिया है। मैं वन में ही रहूँ गा।राम कि¯ष्वफध से लौट आए। वर्षा ऋतु के कारण आगे जाना कठिन था। लंकारोहण कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया। इस अवध् िमें वे प्रश्रवण पहाड़ पर रहे। वर्षा ऋतु बीत गई। राम प्रतीक्षा कर रहे थे। सुग्रीव की वानरसेना की। सीता की खोज के लिए। सुग्रीव ने राजतिलक के दिन राम को इसका आश्वासन दिया था। लेकिन वह अपना वचन भूल गए। राग-रंग में उलझ गए। राम चिंतित थे। दुःखी भी। हनुमान को सुग्रीव का वचन याद था। राजतिलक के दिन वे वहीं थे। उन्होंने सुग्रीव को याद दिलाया। सुग्रीव ने वानरसेना एकत्र करने का आदेश दिया। यह काम सेनापति नल को सौंपा गया। पंद्रह दिन और बीत गए। लेकिन सेना राम के पास नहीं पहुँची। राम सुग्रीव के इस व्यवहार से क्षुब्ध् थे। क्रोध् में उन्होंने सुग्रीव के विनाश तक की बात कही। राम को चिंतित देख लक्ष्मण से न रहा गया। उन्होंने धनुष उठाया तो राम ने उन्हें रोक दिया। कहा, फ्सुग्रीव को बस समझाना है। वह हमारा मित्र है।लक्ष्मण कि¯ष्वफध चले गए। सुग्रीव को समझाने। वहाँ पहुँचकर उन्होंने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई। डोरी खींचकर छोड़ी। उसकी टंकार से सुग्रीव काँप गया। धनुष की टंकार सुनते ही उसे राम को दिया वचन पुनः याद आ गया। तारा ने सलाह दी कि वे तत्काल जाकर राम से मिलें। क्षमा याचना करें। सुग्रीव ने ऐसा ही किया। राम के पास जाने से पूर्व सुग्रीव ने हनुमान को आवश्यक निर्देश दिए। वानर सेना एकत्र करने का आदेश। इस बार सुग्रीव सेना एकत्र होने तक नहीं रुके। तुरंत निकल पड़े। लक्ष्मण के पीछे-पीछे। राम के सामने जाकर भयभीत वानरराज ने उनसे क्षमा माँगी। अपनी चूक के लिए। राम ने उन्हें उठाकर गले लगा लिया। राम और सुग्रीव बात कर ही रहे थे कि उछलकूद करती वानर टोलियाँ वहाँ आ पहुँचीं। हनुमान के साथ लाखों वानर थे। जामवंत के पीछे भालुओं की सेना। इसके बाद लंकारोहण की योजना बनी। वानरों को चार टोलियों में बाँटा गया। अंगद को दक्षिण जाने वाले अग्रिम दल का नेता बनाया गया। उस दल में हनुमान, नल और नील भी थे। राम की यही इच्छा थी। उन्होंने कहा, फ्वानरों की सेना भेजने से पहले चतुर और बुद्धिमान दूतों को लंका भेजा जाए। यही उचित है।राम और सुग्रीव की जय-जयकार करते वानर अपनी निर्धरित दिशाओं की ओर चल पड़े। दक्षिण जाने वाले दल को राम ने रोक लिया। उन्होंने हनुमान को अपने पास बुलाया। अपनी उँगली से अंगूठी उतारकर उन्हें दे दी। अँगूठी पर राम का चिर् िंथा। उन्होंने कहा, “जब सीता से भेंट हो तो यह अँगूठी उन्हें दे देना। वे इसे पहचान जाएँगी। समझ जाएँगी तुम्हें मैंने भेजा है। तुम मेरे दूत हो।दक्षिण की टोली कि¯ष्वफध से चली। अंगद और हनुमान आगे-आगे चल रहे थे। चलते-चलते वे ऐसे स्थान पर पहुँच गए, जिसके आगे भूमि नहीं थी। केवल जल था। विशाल समुद्र। उसकी गहराई अथाह थी। लहरों की गरज वँफपा देती थी। समुद्र को देखकर सबका साहस जवाब दे गया। वानर थक-हारकर वहीं बैठ गए। वानर राम के बारे में चर्चा करने लगे। अंगद ने कहा, राम की सेवा में प्राण भी चले जाएँ तो दुख नहीं होगा। जटायु ने अपनी जान दे दी। हम भी पीछे नहीं हटेंगे।तभी एक विशाल गिद्ध पहाड़ी के पीछे से निकला। वह जटायु का भाई था। संपाति। उसने कहा, “सीता लंका में हैं। मैं जानता हूँ । रावण उन्हें लेकर गया है। आप लोगों को यह समुद्र पार करना होगा। सीता तक पहुँचने का बस यही एक रास्ता है।सीता की सूचना मिलने से प्रसन्न हुआ वानर दल फिर निराश हो गया। समुद्र सामने था। विकराल था। उसे कौन पार करेगा? कैसे करेगा? अंगद उदास हो गए। लक्ष्य सामने था। पर विकट था। उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था। बूढ़ा संपाति उनकी सहायता कर सकता था। पर इस आयु में इतनी लंबी उड़ान संभव नहीं थी। वानर दल असमंजस में पड़ गया। अंगद ने पहले ही कह दिया था कि काम पूरा किए बिना कोई कि¯ष्वफध वापस नहीं जाएगा। वे न आगे जा सकते थे, न पीछे। वे एक-दूसरे की ओर देख रहे थे। इस दल में सबसे बुद्धिमान जामवंत थे। सब उनके पास गए। उनके पास भी इस कठिन प्रश्न का कोई उत्तर नहीं था। तभी जामवंत की दृष्टि हनुमान पर पड़ी। वे सबसे दूर बैठे थे। चुपचाप। जामवंत जानते थे कि यह काम हनुमान कर सकते हैं। वे पवन-पुत्र हैं। उनकी शक्ति अपार है। लेकिन उन्हें स्वयं इसका अनुमान नहीं है। उनकी सोई हुई शक्ति जामवंत ने जगाई। कहा, “हनुमान! आपको जाना होगा। यह कार्य केवल आप कर सकते हैं।सबकी आँखें उन्हीं पर टिक गईं।
Related Posts -  
दंडक वन में दस वर्ष : रामकथा/रामायण भाग - 6
सोने का हिरण : रामकथा/रामायण | भाग-7 
सीता की खोज : रामकथा /रामायण | भाग-8 
राम और सुग्रीव : रामकथा/रामायन | भाग-9
Previous
Next Post »

आपके योगदान के लिए धन्यवाद! ConversionConversion EmoticonEmoticon