औषधीय पौधों से पैसे कैसे कमायें



आजकल औषधीय पौधों की खेती बहुत ही लाभप्रद हो गई है। इनमें सफेद मूसली काफी प्रचलित है। मूलतः यह शक्तिवर्धक है इसलिए इसे किसी भी प्रकार से शरीर में आई शिथिलता को दूर करने के उपयोग में लाया जाता है। यही कारण है कि कोई भी आयुर्वेदिक टोनिक जैसे च्यवनप्राश आदि इसके बिना सम्पूर्ण नहीं माने जाते है। यह इतनी पौष्टिक वर्धक होती है कि इसे दूसरी शिलाजीत कहा गया है। इस दिव्य जड़ी-
बूटी की विश्व भर में वार्षिक उपलब्धता मात्र 5000 टन है। जबकि इसको मांग 35,000 टन प्रतिवर्ष हैं जो लगातार बढ़ती जा रही है। इसकी खेती के लिए मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महराष्ट्र, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, हरियाणा और दिल्ली प्रदेशों की जलवायु अनुकूल है।
सफेद मूसली की आरसी-1, आर.सी.-5, आर.सी.-15, सी.टी.आई.-2, सी.टी.आई-22, सी.टी.आई.-7, और सी.टी.आई. 1 उपयुक्त किस्में है।
वैसे सफेद मूसली के विशेषज्ञ प्रति हैक्टेयर 12-20 क्विंटल सूखी मूसली प्राप्त करते हैं, परन्तु यह 2-3 वर्ष बाद की स्थिति है। यदि आरम्ीा में इसे 4 क्विंटल ही माना जाये और इसका भाव 1000-1200 प्रति कि.ग्रा. होतो इससे 2-4.50 लाख रूपये की प्राप्ति होगी जबकि 1.25-2.5 लाख रूपये की रोपण सामग्री भी उपलब्ध हो जायेगी। इसी तरह से सर्पगंधा एक अन्य महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है। इसकी जड़ों का प्रयोग विभिन्न बीमारियों जैसे मस्तिष्क संबंधी रोगों, मिरगी, कंपन, आंत की गड़बड़ी, प्रसव तथा आंख की बीमारियों के उपचार में होता है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति में इसकी जड़ों का प्रयोग उच्च रक्तचाप तथा अनिद्रा की औषधियां बनाने में होता है। उपयुक्त कृषि विधियां अपनाकर किसान भाई लगभग एक लाख रूपये प्रति हैक्टर का लाभ 20 माह में कमा सकते हैं, साथ ही शेष 4 माह में कोई भी उपयुक्त आमदनी भी ले सकता है। इसके अलावा अश्वगंधा, सतावर, बच, पामारोजा, कलीहारी, आंवला, लेमनग्रास, गुग्गल, अदरक, लहसुन, तुलसी, शंखपुष्पी, शतावरी व कोकुम की औषधीय फसलें हमारे यहाँ सफलता से उगाई जा सकती हैं।
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